ये क्या बिखर गया फ़िज़ाओं में। ....
ना ख़ुशी न गम रहा हवाओं में। ....
हर पछतावा , हर ख्वाहिश सूखे पत्ते सी उड़ गयी। ....
उम्मीदों से उम्मीद भी न रही। ...
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